कौनसी स्त्री के भाग्य में पुत्र प्रापती का योग नहीं होता है।

कौनसी स्त्री के भाग्य में पुत्र प्रापती का योग नहीं होता है।- नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत है हमारे blog sapnemein.com में । आज हम कथा के माध्यम से जानने वाले है, की वो कौनसी निर्भाग स्त्री होती है । जिनको आजीवन पुत्र सुख की प्रापती नहीं होती । एक बार भगवान विष्णु क्षीर सागर में आराम कर रहे थे, और माँ लक्ष्मी उनके पैर दबा रही थी।

तभी माँ लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु जी से कहा की मेरे मन में तीन प्रकार के प्रशन उठ रहे है। अगर आप मेरे इन तीनों प्रशनो के उतर देंगे तभी मेरे चित को शांति मिलेगी। तभी भगवान विष्णु जी माँ लक्ष्मी जी से कहते है। हे देवी, आपके मन में जो भी प्रशन है, निषंकोच पूछो। में तुम्हारी शंका का निवारण अवशय ही करूंगा ।तभी माता लक्ष्मी कहती है। हे प्रभु, वो कौनसी स्त्री होती है जिसके भाग्य में संतान सुख नहीं होता ।

 दूसरा प्रशन है की वो कौनसी स्त्री है, जो समय से पहले विधवा होती है। और मेरा तीसरा और अंतिम प्रशन है की स्त्री को कौनसा श्रंगार करने से स्वर्थ में उच्च स्थान प्राप्त होता है।  तभी भगवान विष्णु जी कहते है, हे देवी आपने जनकल्याण के लिए उचित प्रशन किए है। इन ये सभी प्रशन जन कल्याण के लिए बड़े ही महत्वपूर्ण है।

पृथ्वी लोक पर जो भी इन तीनों प्रशनों के उतर जानता है, उसे संसार के सभी सुखों की प्रापती होटी है, मृत्यु के पश्चात उसे स्वर्ग लोग में उचित स्थान भी मिलेगा। तभी भगवान विष्णु जी माँ लक्ष्मी जी को कहते है, की आज में आपको एक अत्यंत पवित्र और उपयोगी कथा सुनाता हूँ । इस कथा के माध्यम से आपके सभी प्रशनों का उतर आपको मिल जाएगा। लेकिन आपको इस कथों को अपने चित को खुला रखकर सुनना होगा। इस कथा को कभी आधी अधूरी नहीं छोडनी चाहिए। क्योकि इस कथा में सम्पूर्ण पृथ्वी वासियों का कल्याण छुपा हुआ है।

इस कथा को जो भी व्यक्की ध्यान से सुनेगा , में उसके बातीस अपराध क्षमा हो जाएँगे। कहने का अर्थ है की उसके जीवन में ऐसा बदलाव आयेगा, की वो बत्तीस प्रकार के अपराध करने बंद कर देगा। तभी माँ लक्ष्मी जी कहती है, हे प्रभु में आपको वचन देती हूँ। की में इस कथा को ध्यान और लगन से सुनुंगी, इस कथा को जल्दी आरंभ करे, क्योकि में इस कथा को सुनने के लिए उत्सुक हूँ।  दोस्तों आप भी इस कथा को आत्मिक मन से सुने। भूलकर भी इस कथा को बीच में ना छोड़े।

कौनसी स्त्री के भाग्य में पुत्र प्रापती का योग नहीं होता है।

अगर आप इस कथा को बीच में छोड़ देते है , तो आप जीवन के एक पहलू को अधूरा छोड़ देंगे। दोस्तों अगर आप भी एक हिन्दू है, तो कमेंट बॉक्स में जय माँ लक्ष्मी और श्री नारायण हरी विष्णु जरूर लिखे। ताकी आप पर माँ लक्ष्मी और विष्णु जी की दया दृष्टि बनी रहे। अगर आपको ये पोस्ट अच्छा लगा तो हमारे ब्लॉग का नाम याद कर लीजिये ।

भगवान विष्णु कहते है, हे देवी, एक समय की बात है, पश्चिम दिशा में एक छोटा सा गाँव था, उसमे एक सेठ रहता था। सेठ के दो बेटे थे। दोनों बेटों का विवाह भी हो चुका था । उनका परिवार हरा भरा था और सेठ के परिवार में किसी चीज की कमी नहीं थी। सेठ जितना शांत और धार्मिक था, सेठानी और सेठ के बड़े बेटे की बहू का स्वभाव उतना ही कड़वा और दुष्ट परवर्ती का था। जिसके कारण सेठानी बड़े बेटे की बहु से तो बहुत प्यार से पेस आती थी। लेकिन छोटे बेटे की बहु के साथ सेठानी बहुत ही दुष्ट व्यवहार करती थे । लेकिन छोटे बेटे की बहु बहुत ही शांत मन की थी। उसके मन में किसी प्रकार का कोई पाप नहीं था, वो धार्मिक और पति वर्ता नारी थी। वो घर का पूरा काम अकेले ही कर लिया करती थी।

वो घर के सभी कामों में चतुर और निपुण थी। इतनी अच्छी बहु होने के बाद भी सेठानी उसके साथ बहुत बुरा बर्ताव किया करती थी। वो छोटी बहु के अपमान का कोई मौका नहीं छोडती थी। इस दूरव्यवहार का इतना सा कारण था, की बड़ी बहू को एक पुत्र था जबकि छोटी बहु ने एक पुत्री को जन्म दिया। ईसी के चलते सेठानी बार बार अपनी छोटी बहु को ताना मारा करती थी। लेकिन वो भाग्य के आगे लाचार थी ।  वो मानती थी की जो भाग्य में लिखा होता है वही होता है। किसी को दोष देने से क्या लाभ।

 तभी भगवान विष्णु जी माँ लक्ष्मी जी को कहानी से बाहर निकालते है , क्योकि माँ लक्ष्मी कहानी में खोई हुई थी, जिस प्रकार आप भी खोये हुए थे। भगवान विष्णु जी कहते है, हे देवी , अब में तुझे छोटी बहु की कहानी सुनाता हूँ। जिससे आपको अपने पहले प्रशन का उतर मिल जाएगा। की कौनसी स्त्री को पुत्र की प्रापती नहीं होती है। सेठ की जो पत्नी थी, वो दुष्ट और कडवे स्वभाव की थी । उसके दुष्ट स्वभाव  के कारण उसकी सास भी परेशान थी । इसलिए अपने दुष्ट स्वभाव के चलते वह अपनी छोटी बहु सुकन्या, को बहुत दुख देती थी। सुकन्या को सताने में सेठानी को बहुत आनंद की अनुभूती होती थी। सुकन्या बिना सिकायत किए , ब्रह्म मुहूर्त में  उठकर दिन भर अपने घर के सारे काम चुप चाप करती थी। उसे शाम को सोने के बाद ही आराम मिलता था। इतना काम करने के बावजूद भी सेठानी अपनी छोटी बहु से द्वेष करती थी।

जब भी वो घर में झाड़ू निकालती तो उसकी सास उसे ताने मारने लगती। की तेरे हाथों में जान नहीं है क्या , क्या धीरे धीरे झाड़ू लगा रही है। में मंदिर जाकर आ रही हूँ। मेरे आने से पहले भोजन बन जाना चाहिए। मेरे को मंदिर से आते ही भोजन चाहिए। ध्यान रहे, की अन का एक भी दाना बर्बाद नहीं होना चाहिए। बेचारी सुकन्या अपनी साँसे रोके हुए बड़ी ही विनम्रता के साथ अपनी सास की आज्ञा का पालन किया करती थी। तभी छोटी बहु खाना बनाते समय सोचने लगी, की में दिन भर इतना काम करती हु, फिर भी मेरे को चैन की सांस नहीं है।  में कोई भी गलती नहीं करती फिर भी सासु माँ ताना मारने के लिए, कोई न कोई बहाना ढूंढ ही लेती है। भगवान जाने कब इनकी ये ताना देने की आदत जाएगी। सुकन्या एसी बातें सोच ही रही थी। तभी मुख्य दरवाजे  से खटखटाने की आवाज आई।

छोटी बहु ने सोचा सासु होगी, अभी तक तो भोजन तैयार ही नहीं हुआ। लगता है की मंदिर से जल्द ही आ गई। लगता है फिर से ताने सुनने पड़ेंगे, तभी सुकन्या ने बड़े ही शांत मन से दरवाजा खोला, तो उन्होने पाया की दरवाजे पर एक सन्यासी खड़ा है। जैसे ही सुकन्या ने सन्यासी के चरण छूये। तो सन्यासी कहने लगा की सदा सुहागिन रहो, मुझे बहुत तेज भूख लगी है तुम इस सन्यासी को भोजन दान करों। तभी सुकन्या ने सोचा की , अगर में इस साधू बाबा को भोजन करा दूँ, और इतने में मेरी सास आ गई तो , वो मेरा जीना हराम कर देगी।

फिर सुकन्या सोचने लगी, अगर में अपनी कुटिल सास के डर से इस बाबा को भोजन नहीं कराती हूँ , तो मुझे महापाप लगेगा, और आज तक मैंने जितने भी पुनय किए है। वो सारे पुनय नष्ट हो जाएँगे। इतना सोचकर सुकन्या ने उस सन्यासी बाबा को घर के अंदर बुला लिया । सुकन्या ने अतिथि धर्म का पालन करन्ते हुए ,उस सन्यासी बाबा को भोजन करवाने लगी। तभी उसकी सास घर पर आ पहुँचती है, और उस सन्यासी बाबा को घर के अंदर भोजन करते हुए देखकर उसे बहुत ज्यादा गुस्सा आ जाता है ।

सुकन्या को डांटते हुए सास बोली यहाँ कोई भंडारा चल रहा है , जो तू हर किसी राह चलते भिखमंगों को घर बैठाकर खिला रही हो। ये घर क्या तेरे बाप का है जो हर किसी को लूटा रही है। सुकनया ने अनपी सास से बड़ी विनती की, की आप घर आए अतिथि का अपमान न करें, लेकिन सेठानी ने अपनी बहु की एक भी न सुनी और सन्यासी बाबा का अपमान करते हुए उसे घर से बाहर निकाल दिया । सन्यासी बाबा के सामने ही उसके भोजन को उठाकर कचरे में फेंक दिया । उसके बाद सास ने सुकन्या पर गुस्सा करते हुए कहने लगी, अरे दुष्ट औरत , मैंने तुझे कितनी बार सकझाया, की अन  का एक भी दना  बर्बाद नहीं होना चाहिए। लेकिन तू तो सेठानी बन बैठी और उस भीखमंगे के पीछे इतना भोजन बर्बाद कर दिया।

सुकन्या डरते हुए बोली, हे शासु माँ , मैंने तो सन्यासी बाबा बो अपने हिस्से का भोजन दिया है, इसमे अन्न कहाँ से बर्बाद हो गया , इतनी सी बात में गुस्सा करने की क्या बात है, शास्त्र भी यही कहते है की घर आए याचक को कभी खाली हाथ नही लौटाते । फिर सुकन्या की सास ने सुकन्या को बहुत डांटा, दोनों के बीच बहस बढ़ गई, तभी सुकन्या की सास ने धक्के मारकर सुकन्या को घर से बाहर निकाल दिया और दरवाजा बन कर लिया।

सुकन्या काफी देर तक घर के दरवाजे के सामने खड़ी रही , और अपनी सास को आवाज देने लगी । लेकिन सुकन्या की सास ने अपनी बहू की एक भी नहीं सुनी , और लाख विनती करने के बाद भी उसे घर के अंदर नहीं आने दिया । अंत में दुखी होकर सुकन्या उदास मन से अपने मायके की और चल पड़ी, मायके जाने के रास्ते में एक बहुत बड़ा जंगल था। सुकन्या भूखी प्यासी जंगल के रास्ते पर चल पड़ी ।

तभी अचानक से तेज हवाएँ चलें लगी ज़ोर ज़ोर से बादल गरजने के साथ साथ मूसलाधार बारिस होने लगी। बारिस से बचने के लिए सुकन्या एक पेड़ की सरन में चली गई,  पेड़ अंदर से खोखला था। उस खोखले पेड़ के अंदर एक महात्मा लीन बैठे थे। वो साधू कोई और नहीं बल्कि भगवान विष्णु, खुद साधू के वेस में बैठे थे । जब साधू महात्मा ने सुकन्या को देखा तो बोले, हे पुत्री, इस सुनसान जंगल में तुम अकेली क्या कर रही हो , रोना बंद करो , में तुम्हारे बारे में सब कुछ जानता हूँ। तुम्हारी ससुराल वाले बड़े ही क्रूर और दुष्ट परवर्ती के है । वो तुम्हें हर समय दुख देते रहते है। दुख देने का बस इतना छोटा कारण है, की तुम्हें पुत्र की प्रापती नहीं हुई है। पुत्री को जन्म देने के कारण तुम्हें दिन भर ताने सुनने पड़ते है। तभी साधु बाबा बोले, है पुत्री, तुम चिंता मत करो । में तुम्हें एक पर्ची देता हूँ, इस पर्ची पर जो भी उपाय लिखा हुआ है, तूम इस उपाय का पालन सच्चे मन से करों, जिससे तुम्हें एक गुणवान पुत्र की प्रापती होगी। जैसे ही सुकन्या ने वो पर्ची ली, साधू महात्मा वहाँ से गायब हो गए। इस चमत्कार को देखकर सुकन्या बहुत ज्यादा प्रसन्न हुई ।

जब बारिश रुकी तो सुकन्या का पती उसे ढूंढते हुए जंगल में पहुँच गया। तभी सुकन्या ने अपने पती को सारी बात बता दी। तब सुकन्या के पती ने सुकन्या की हकीकत जानने के बाद, घर न  जाने का निर्णय किया , और फिर दोनों जंगल में ही रहने लगे। वहीं पर रहते हुए सुकन्या के मन में पुत्र के प्रापती का विचार आया और वह मन ही मन सोचने लगी की अगर मुझे भी कोई पुत्र होता तो । ससुराल में मुझे भी खूब इज्जत मिलती । तभी सुकन्या को साधू की पर्ची याद आ गई और फिर उसने को खोलकर पढ़ा , तो उसने देखा की, जो स्त्री पुत्र प्रापती की कामना रखती है, उसे पति की बायी तरफ सोना चाहिए।

ऐसा करने से कुछ समय बाद में बाई करवट लेने से नाक का दाहिना स्वर, और दाहिनी करवट लेने से नाक का बाया स्वर चालू हो जाता है। तो फिर पुत्र की इच्छा हो, तो उस स्थिति में मिलन से पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए, की पुरुष का दाया स्वर चलने लगे, और स्त्री का बायाँ स्वर चलने लगे, उस समय पर गर्भधान किया जाना चाहिए। ऐसा करने से निश्चित ही पुत्र की प्रापती होती है। इसके विपरीत नाक के स्वर चलने से, पुत्री की प्रापती होती है , उस पर्ची में आगे लिखा हुआ था, की मासिक धर्म शुरू होने के बाद,

पहले चार दिनों में पुरुष के साथ मिलन करने से पुत्र रत्न प्राप्त हो जाता है, और पाँचवी रात्री में मिलन करने से पुत्री की प्रापती होती है, तथा छठी रात्री में मिलन करने से पुत्र रत्न की प्रापती होती है।

 सातवी रात्री में मिलन करने से वनध्या पुत्री की प्रापती होती है,आतवी रात्री में मिलन करने से बालसाली पुत्र की प्रापती होती है, नौवि रात्री में मिलन करने से सुंदर काया की प्रापती होती है, दशवी रात्री में मिलन करने से विद्वान और श्रेष्ठ गुणवान पुत्र की प्रापती होती है , ग्यारहवि रात्री में मिलन करने से सुंदर आचरण वाली कन्या प्राप्त होती है।

बारहवि रात्री में मिलन करने से गुणवान पुत्र की प्रापती होती है। तेरहवि रात्री में मिलन करने से लक्ष्मी रूपा पुत्री की प्रापती होती है। जबकि चौदहवी राती में मिलन करने से , गुणवान, बुद्धिमान, और बलवान पुत्र होता है। फिर सुकन्या ने मासिक धर्म के चौदहवी रात्री में अपने पती के साथ मिलन किया ,और इसके साथ गर्भ धारण किया । फिर दूसरे दिन सुकन्या का पती लकड़ियाँ काटने के लिए जंगल में चला गया, सुकन्या अपनी झोपड़ी में बैठी हुई थी।

तभी अचानक से तेज तूफान आता है और सुकन्या की झोपड़ी अपने साथ उड़ा ले जाता है। फिर सुकन्या दौड़ती हुईं उस पेड़ के खोखले कोटर में चली गई , जहा पर उसे सन्यासी बाबा मिले थे। तूफानी मौसम में सुकन्या अपने पती का इंतजार कर रही थी। तभी वहाँ पर दो राक्षसी आ गई , वो अत्यंत ही मायावी और  चालाक थी, फिर उन्होने उस पेड़ को कोटर के साथ उस जगह पर लेकर चली गई , जहां पर बहुत ही ज्यादा सोना था ।

 जब सुकन्या ने बहुत सारा सोना देखा तो वह चोक गई। सुकन्या उस पेड़ के कोटर में छूपी रही वही तब तक कोटर से बाहर नहीं आई। जब तक राक्षसी दूर नहीं चली गई। तब मौका पाकर सुकन्या ने बहुत सारा सोना उठाकर कोटर में भर लिया। जब राक्षसी लौटकर आई, तो फिर से उस पेड़ पर बैठकर उस पेड़ को उड़ाकर उसी जंगल में ले आई । राक्षसी के जाने के बाद सुकन्या सारा सोना लेकर अपने पती के पास चली गई ।

सुकन्या ने सारा सोना पती को दे दिया, फिर पती पत्नी अपने ससुराल लौट गई । और सारा सोना अपनी सास को दे दिया और सारी हकीकत भी बता दी , जिसे सुनकर सास को बहूत ज्यादा गुस्सा आया , और बोलने लगी, अरे मूर्ख औरत, तू बस इतना सा सोना ला पाई । इतने सोने से क्या होगा। अगर तेरी जगह मे होती तो बहुत सारा सोना ले आती । अगले ही दिन उसकी सास भी उस पेड़ के कोटर में जाकर छिप गई और राक्षशी की राह देखने लगी।

तभी वहाँ पर वो दो राक्षशी आई, और उस पेड़ को उड़ाकर बर्फफिले पहाड़ पर ले गई। इस दृश्य को देखकर सास बहुत क्रोधित हो गई , और बोलने लगी, ये कहाँ लेकर आई है। यहाँ पर तो केवल बर्फ और मिट्टी मात्र है। तभी उन  राक्षशी ने उस सेठानी की आवाज सून ली। तभी राक्षशी ने देखा की एक बूढ़ी औरत पेड़ के कोटर में छिपकर बैठी है। फिर राक्षशी ने उस सेठाई को कोटर से निकालकर बर्फीले पहाड़ों में फेंक दिया। जमीन पर गिरते ही उस बूढ़ी सास की मौत हो गई।

उधर सुकन्या अपने पती के साथ बड़े आनंद के साथ जीवन बिता रही थी। लेकिन सुकन्या की सास कभी नहीं लौटी, तो सुकन्या ने जाकर उस कोटर में देखा, तो वहाँ पर उसकी सास नहीं थी। उसे समझ में आ गया की लालच के कारण उसकी सास की मृत्यु हो गई । भगवान विष्णु जी कहते है , हे लक्ष्मी, जिस स्त्री को पुत्र प्रापती की कामना है, उसे सुकन्या को दी हुई पर्ची में बताए गए उपाय जरूर करें । तुम्हारा दुसरा प्रशन यह था, की किस कारण से स्त्री जल्दी विधवा होती है।

जो स्त्री अत्यधिक लालच करती है, वह स्त्री जल्दी विधवा होती है ।और जो स्त्री चरित्र का गहना पहनती है, उसे मृत्यु के पश्चात स्वर्ग की प्रापती होती है। एक स्त्री को अपने चरित्र का त्याग कभी नहीं करना चाहिए। तो दोस्तों इस प्रकार से भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी को यह कथा सुनाई थी, उम्मीद है आपको यह कथा पसंद आई होगी। तो इस पोस्ट की लिंक अपने दोस्तों के साथ सांझा करें । ताकी आपके दोस्तों का भी कल्याण हो सके।

सपने में भगवान से बातें करना कैसा होता है ?

ध्नयवाद दोस्तों।

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